Sunday, September 13, 2009

दिल पे खुशियों की वो बरसात कहाँ होती है

दिल पे खुशियों की वो बरसात कहाँ होती है
वो तो मिलते हैं मगर बात कहाँ होती है
इस नए दौर के जिंदा भी हैं मुर्दों की तरह
गर्मिए शिद्दते जज़्बात कहाँ होती है
दोस्त बातोंमें उड़ाते थे अंधेरे जिसके
अब रसीली वो भला रात कहाँ होती है
खुल के मिलते थे सुदामा से कन्नहिया जैसे
अब वो पहली सी मुलाकात कहाँ होती है
रूबरू आते ही आँचल को हवा ले जाए
अब वो जादू सी करामत कहाँ होती है
अब्र से पहले चले आते हैं आंधी तूफां
दिल लुभाती हुई बरसात कहाँ होती है
जान देकर भी जो हर फ़र्ज़ अदा करते हैं
ऐसे मर्दों की भला मात कहाँ होती है
दिल भी उसका है जुबां उसकी बयां भी उसका
हमसे तफसीरे अनायत कहाँ होती है
तेरी यादों ने ग़ज़ल कहना सिखाया हमको
इस से बढ़ कर कोई सौगात कहाँ होती है
हुस्न पर जान लुटा कर जो मुहब्बत मांगे
इश्क की इतनी भी औकात कहाँ होती है
हम फकीरों को कहाँ इस की ख़बर है ‘आमिल’
दिन गुज़रता है कहाँ रात कहाँ होती है
राजबीर देसवाल ' आमिल '

4 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. Clouds O Clouds..!!
    behaving like my restless lover,
    who goes before he comes...!!

    But still I wait for him,
    as looking up the sky
    For you to rainshower to soak me
    again............n again.............!!

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  3. Clouds O Clouds..!!
    behaving like my restless lover,
    who goes before he comes...!!

    But still I wait for him,
    as looking up the sky
    For you to rainshower to soak me
    again............n again.............!!

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