Sunday, November 22, 2009

बे-सबब

बे-सबब/राजबीर देसवाल
छोड़ कर मुझको अकेला, बढ़ गया है कारवां,
कौन पीछे रह गया, मैं देखता ही रह गया.
तोड़ने को एक टुकड़ा, आसमान का, हाथ उठा तो,
लो मेरे ऊपर ही वो, सारा का सारा डह गया.
एक सहरा, प्यास का, सूखे का, बंजर का पला
पसरा-पसरा, ऊंघ कर, मुझको नकारा कह गया.
इक समंदर, ढीठ सा, ठहरा हुआ था आँख में,
आपको देखा तो फिर, वो बे-हिसाबा बह गया.
एक पत्थर कोह सा, दिल पे रहा, ता-ज़िन्दगी,
‘ए खुदा तू है ! ’ समझ कर, बोझ सारा सह गया.
क्यों किए हैं आप शिकवा, मेरे कहने पर जनाब,
जो कहा, जैसा कहा, बस बे-सबब ही कह गया.

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