Friday, December 25, 2009

भरोसा /राजबीर देसवाल

ज़माना हाथ से फिसला सा लगता जा रहा है
ये किस मुकाम पे जीवन के आ गया हूँ मैं !!!
कहाँ छुपूं बता यारब करूँ मैं क्या तुही बता
फ़ैल कर खुद ही अपने नभ पे छा गया हूँ मैं !!!
ये सब दुशवारियां ओ तल्खियाँ क्यूं मेरे हिस्से हैं
क्यूं इन तकलीफों तन्हाइयों को भा गया हूँ मैं !!!
कोई तो ऐसा शाना हो मिले अब सर को जो मेरे
गमे दुनिया मिला इतना की अब घबरा गया हूँ मैं !!!
सुना है तू बड़ा दानिश है तेरी ताब है इतनी
तेरी महफ़िल मैं इस ख्याल से फिर आ गया हूँ मैं !!!
तेरी रहमत मुझे बक्शे तो बक्शे ए खुदा मेरे
की सिजदे में तेरे भरोसा पा गया हूँ मैं !!!
राजबीर देसवाल

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