Sunday, November 14, 2010

बंदूक और डंडा उठाने वाले खाखी हाथों ने थामी कलम

कोई भी परिस्थिति मेरे लिए प्रेरणा होती है: राजबीर देसवाल लाठी और बंदूक उठाने वाले हाथों में कलम से शब्दों की जंग निश्चित रूप से एक अलग सा अहसास देता है। अपनी अनंत कल्पनाओं को सहेजकर साहित्य सृजन करने वाले इस वर्दी वाले साहित्यकार का नाम है राजबीर देसवाल। हरियाणा पुलिस के आईजी सीआईडी देसवाल एक उत्कृष्ट साहित्यकार ही नहीं एक शायर, कवि, गायक और एक छायाकार भी हैं। अंग्रेजी साहित्य में एमए, एलएलबी आईपीएस राजबीर देसवाल ने अंग्रेजी, हिंदी की अब तक आधा दर्जन से ज्यादा कृतियों का सृजन किया है।शनिवार को चंडीगढ़ सेक्टर-27 के भवन विद्यालय के सभागार में उन्होंने अपनी अंग्रेजी की नवीन कृति "मॉल वाच" का लोकार्पण किया। लोकार्पण की रस्म विधिवत रूप से निभाई हरियाणा एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म कमीशन के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार डीआर चौधरी ने।"मॉल वाच" पिछले लगभग तीन दशक में विभिन्न अंग्रेजी समाचार पत्रों में प्रकाशित देसवाल के सैकड़ों मिडल्स का एक संकलन है। देसवाल ने बताया कि ये सभी मिडल्स संस्मरण, यात्रा, रोमांच, हल्के-फुल्के क्षणों व सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे विभिन्न विषयों पर आधारित हैं और प्रत्येक मिडल विशुद्ध साहित्यिक रचना का उदाहरण है। इसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की ताजमहल में शाहजहां से बातचीत काफी रोचक मिडल है। मॉल वाच दस खंडों की श्रृंखलाओं में दूसरा खंड है। इससे पहले उन्होंने "होलीपोल" नाम से भी एक पुस्तक प्रकाशित की है।मिडल्स के अतिरिक्त देसवाल अंग्रेजी समाचार पत्रों के लिए पुस्तकों की समीक्षा नियमित रूप से करते हैं। उन्होंने हरियाणा की रागनियों को अंग्रेजी में अपनी पुस्तक हूर मेनका के रूप में लिखकर हरियाणवी साहित्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलवाने का सराहनीय प्रयास किया है। पुलिस अधिकारी पर जिम्मेदारियों का बोझ और साहित्य सृजन। कैसे स्थापित कर पाते हैं यह सामंजस्य? इस पर आईजी देसवाल का कहना है कि हालांकि दोनों अलग-अलग क्षेत्र हैं, लेकिन जब वह पुलिस अधिकारी होते हैं तो केवल पुलिस अधिकारी होते हैं और जब साहित्य सृजन करते हैं तो केवल साहित्यकार होते हैं। दोनों ही क्षेत्रों में इतना अंतर है कि पुलिस की नौकरी में दबाव भी होता है काम का दायरा सीमित भी होता है, लेकिन लेखन में कोई बंधन नहीं, कोई दायरा नहीं। कल्पनाओं की एक अंतहीन उड़ान है। फिक्शन यानी काल्पनिक और व्यंग्य लेखन के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि अपने आप पर हंसना सबसे बड़ा व्यंग्यकार होता है। जहां तक फिक्शन का सवाल है इसके लिए बहुत समय की आवश्यकता होती है। अपनी लेखन की प्रेरणा के बारे में देसवाल ने कहा कि कोई भी परिस्थिति उनके लिए प्रेरणा होती है।

हरियाणा साहित्य अकादमी पंडित लख्मी चंद अवार्ड विजेता देसवाल ने अपनी इस पुस्तक को सुप्रसिद्ध लेखक व अपने मित्र खुशवंत सिंह को समर्पित किया।

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