'And what remains in the end?
It is the beauty of space
freed from strife and sorrow;
from the anguish and pain
of evolution;
From the veil of miscalculation;
From the checks and balances
of judgement; and merging
with the cleansing breeze
of the limitless desert
The soul is filled with understanding
with the equipoise of silence.'
और क्या बच रहता है अंततह:
केवल सुन्दरता ? मुक्त हो जाने की?
दुखों और वेदनाओ से
काल-अन्तराल से
हमेशा बढ़ते ही रहने के दर्द और कुंठाओं से
आच्छादित सही-ग़लत अनुमानों से
सधे हुए या उलझे पड़े निर्णयों से
और आताम्सात हो कर उस पवन से
जो बह कर असीम मरुसथ्लों से
निर्मल हो जाती है ।
आत्मा तब उस मौन की एकागर्ता से
सराबोर हो जाती है ।
रॉबिन गुपता की मूल कविता से राजबीर देसवाल द्बारा अनुदित
It is the beauty of space
freed from strife and sorrow;
from the anguish and pain
of evolution;
From the veil of miscalculation;
From the checks and balances
of judgement; and merging
with the cleansing breeze
of the limitless desert
The soul is filled with understanding
with the equipoise of silence.'
और क्या बच रहता है अंततह:
केवल सुन्दरता ? मुक्त हो जाने की?
दुखों और वेदनाओ से
काल-अन्तराल से
हमेशा बढ़ते ही रहने के दर्द और कुंठाओं से
आच्छादित सही-ग़लत अनुमानों से
सधे हुए या उलझे पड़े निर्णयों से
और आताम्सात हो कर उस पवन से
जो बह कर असीम मरुसथ्लों से
निर्मल हो जाती है ।
आत्मा तब उस मौन की एकागर्ता से
सराबोर हो जाती है ।
रॉबिन गुपता की मूल कविता से राजबीर देसवाल द्बारा अनुदित
2 comments:
sir really wonderful.the power of words touchs to heart directely.
both original and translation are good--depth in meaning rightful choice of words---bhupinder
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