सबब /राजबीर देसवाल
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तुम से सौ बार कहा है
मुझसे पूछा न करो
सबब हर बात का कुछ ह़ो
सबब हर बात का कुछ ह़ो
ये ज़रूरी तो नहीं
चाँद चमका है कहीं पर
सूर्य दमका है ज़मीं पर
हो हरेक दिल में उजाला
ये ज़रूरी तो नहीं
ज़िन्दगी लहर बहर है
क्या जीने का कहर है
फिर तमन्ना जवान हो
ये ज़रूरी तो नहीं
लाख छाई हों घटायें
और हों मस्त फिजायें
फिर भी बरसेंगी बदलियाँ
ये ज़रूरी तो नहीं
झोली खुशियों से भरी हो
दिल नवाजिश से अटा हो
और न ख्वाहिश की कमी हो
ये ज़रूरी तो नहीं
पलक की परत के पीछे
ग़मों की गर्त के नीचे
न हों ऑंखें भी अगर नम
ये ज़रूरी तो नहीं
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राजबीर देसवाल
राजबीर देसवाल
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