Saturday, January 9, 2010

मेरा बयान /राजबीर देसवाल

मेरा बयान /राजबीर देसवाल

मैं ब्यान करता हूँ की
मैं कातिल हूँ अपनी रूह का
अपने अरमानो का मैंने
गला घोटा है
गो ये जुर्म छोटा है
मगर मैं जल्लाद की मानिंद
रहमो-करम की
गुहार नहीं सुनता
मेरा तर्क है
इस का हक नहीं है मुझे
बेशक मज़ा आता है मुझे
देख कर अपनी मरी रूह का चेहरा
जिसे एक झटके से मैंने नई

शकल दे दी है

ये निकली ऑंखें मुझे भाती हैं
ये लटकती जीभ डराती नहीं
रूह की टूटी गर्दन
मुझे एहसास कराती है
की मैं वाकई जल्लाद हूँ
मगर मैं ये इकबाल
खुदा की अदालत मैं करूंगा
हल्फिया ब्यान देना है
तलाश है इक शाहिद की
जो तस्दीक भी करे
मगर एक शर्त पे खरा उतरे की

वो शाहिद एक एय्यार न हो

अय्यारों के शहर में बसर न करता हो
है कोई?
है कोई?
जो इस शरत पे खरा उतरे!
नहीं?
तो मैं शहादत दूंगा
मगर रूबरू उस खुदा के
जिसकी अदालत मैं
हलफ से

ये ब्यान देना था
राजबीर देसवाल

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