आज तो पहचान से भी करता है इनकार
हाय मेरा कल मुझे अब का सा लगता है।
इक हसीन खाब जो देखा किये दिन मेंअब वही सपना किसी शब् का सा लगता है।
वो तब्बसुम जो कभी सजता था चाँद पे
आज वो जलवा तेरे लब का सा लगता है।
जखम है ताज़ा मगर भरने लगा है ये
देखता हूँ जब इसे कब का सा लगता
वो भला सा गीत आया फिर जबान पे
वो भला सा गीत आया फिर जबान पे
धुन के तारों पे मगर तब का सा लगता है।
था जहां पूरा मेरे ख्वाबों का कैनवैस
घट रहे मित्रों का अब तबका सा लगता है।
जो मेरा था पीर, मेरा था, मेरा ही था
और ऊपर उठ गया सब का सा लगता है।
तेरा चेहरा जो कभी इन्सां का लगता था
इश्क के हर रंग में रब का सा लगता है।
राजबीर देसवाल 'आमिल'
1 comment:
था जहां पूरा मेरे ख्वाबों का कैनवैस
घट रहे मित्रों का अब तबका सा लगता है।
Bahut Khoob!!!
Kabhi toh subah hogi iss raat ki, phir nikloongaa khud ko dhundne.
Regards!!!
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