सीने पे उतर आता है, ख्याल भर से।
उसकी जो रौशनी है वो शीतल है शांत है
धुंदला मगर हो जाता है, मलाल भर से ।
कहते हैं दाग हैं वहां उसके दामा पे
शर्मांता नुक्ताचीनों को, जमाल भर से ।
पूछा क़ि यूँ परेशां क्यूं चाँद तू हुआ
आँखों में उतरा जज्बों के, उछाल भर से ।
एक मर्तबा पूछा कहाँ तू खो गया था चाँद ?
वो छुप गया बदली परे, सवाल भर से ।
राजबीर देसवाल दिसम्बर १२.२०१०.
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